मुनव्वर राना की शायरी | 50 Best Munawwar Rana Shayari Quotes Poetry in Hindi

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#1 - Top 10 Munawwar Rana Shayari in Hindi


जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है

मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है



चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है

मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है


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ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,

मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है



आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम

काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ


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मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है

मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है


#2 - मुनव्वर राना शायरी हिंदी Maa


बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता

कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता



मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है

किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है


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माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना

जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती



मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं

सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया


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मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है

किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है


#3 - बचपन पर मुनव्वर राना शायरी


खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से

बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही



बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर

माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है


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बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें

यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था



दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके

महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा


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दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं

कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है


#4 - मुनव्वर राना गजल हिन्दी मे


कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे

माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी


-


अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा

मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है


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यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा

ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा



जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई

देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई


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ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे

माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे


#5 - मुनव्वर राना रेख़्ता शायरी


हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए

माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे


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मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ

माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ


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इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है

माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है



ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया

माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया


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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई

मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई


#6 - Munawwar Rana All Gazal


जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा

मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा


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मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है

पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है


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लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती

बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती



मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू

मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना


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दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसम

ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा

नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी

मैंने जो मां पर लिक्खा है, वही काफी होगा


#7 - Munawwar Rana Quotes in Hindi


मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए

हम इस ग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए


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ऐ अहले-सियासत ये क़दम रुक नहीं सकते

रुक सकते हैं फ़नकार क़लम रुक नहीं सकते

हाँ होश यह कहता है कि महफ़िल में ठहर जा

ग़ैरत का तकाज़ा है कि हम रुक नहीं सकते


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मर्ज़ी-ए-मौला मौला जाने

मैं क्या जानूँ रब्बा जाने

डूबे कितने अल्लाह जाने

पानी कितना दरिया जाने

आँगन की तक़सीम का क़िस्सा

मैं जानूँ या बाबा जाने

पढ़ने वाले पढ़ ले चेहरा

दिल का हाल तो अल्लाह जाने



आओ तुम्हें दिखाते हैं अंजामे-ज़िंदगी

सिक्का ये कह के रेल की पटरी पे रख दिया


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इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप

शहर वालों से हमारी दुशमनी बढ़ जायेगी


#8 - Munawwar Rana Poetry in Hindi


घरों को तोड़ता है ज़ेहन में नक़्शा बनाता है

कोई फिर ज़िद की ख़ातिर शहर को सहरा बनाता है

ख़ुदा जब चाहता है रेत को दरिया बनाता है

फिर उस दरिया में मूसा* के लिए रस्ता बनाता है

जो कल तक अपनी कश्ती पर हमेशा अम्न लिखता था

वो बच्चा रेत पर अब जंग का नक़्शा बनाता है


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नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते

ये सारे लहलहाते खेत बंजर हो गए होते

तेरे दामन से सारे शहर को सैलाब से रोका

नहीं तो मेरे ये आँसू समन्दर हो गए होते


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किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में

न जाने कितनी ही तहदारियाँ आराम करती हैं



कहीं पर छुप के रो लेने को तहख़ाना भी होता था

हर एक आबाद घर में एक वीराना भी होता था


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मौला ये तमन्ना है कि जब जान से जाऊँ

जिस शान से आया हूँ उसी शान से जाऊँ


#9 - मुनव्वर राना की शायरी माँ के ऊपर


मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ

मैं बातें भूल भी जाऊं तो लहजे याद रखता हूँ


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तलवार की नियाम कभी फेंकना नहीं

मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आए

कच्चा समझ के बेच न देना मकान को

शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आए


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मौत का आना तो तय है मौत आयेगी मगर

आपके आने से थोड़ी ज़िन्दगी बढ़ जायेगी



मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता

अब इससे ज़ियादा मैं तेरा हो नहीं सकता


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मियां मैं शेर हूं शेरों की गुर्राहट नहीं जाती

मैं लहजा नर्म भी कर लूं तो झुंझलाहट नहीं जाती


#10 - मुनव्वर राना - कविता कोश


यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है

जो तू ख़रीदे तो बिकना ज़रूर पड़ता है


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जहां तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया है

मगर ऐ आंसुओं! तुमने बहुत रुसवा कराया है


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बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें

यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था



बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है

बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है

मैं इंसान हूँ बहक जाना मेरी फितरत में शामिल है

हवा भी उसको छु के देर तक नशे में रहती है


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सहरा पे बुरा वक़्त मेरे यार पड़ा है

दीवाना कई रोज़ से बीमार पड़ा है


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