अल्लामा इक़बाल की शायरी | 50 Best Allama Iqbal Shayari Quotes Poetry in Hindi
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#1 - Top 10 Allama Iqbal Shayari in Hindi
तिरे इश्क़ की ''इंतिहा'' चाहता हूँ
मिरी ''सादगी'' देख क्या चाहता हूँ
ये जन्नत "मुबारक" रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
हम से पहले था ''अजब'' तेरे जहाँ का मंज़र
कहीं मसजूद थे पत्थर कहीं_माबूद शजर
खूगर ए पैकर ए महसूस थी इंसां की नज़र
मानता फिर कोई #अनदेखे ख़ुदा को क्योंकर
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तेरा
कुव्वत ए बाज़ू ए #मुस्लिम ने किया काम तेरा
चिंगारी आजादी की 'सुलगती' मेरे जश्न में है।
इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे_बदन में है।
मौत जहां #जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है।
कुर्बानी का जज्बा ''जिंदा'' मेरे कफन में है।
हर मुसलमाँ #रग-ए-बातिल के लिए नश्तर था
उस के ''आईना-ए-हस्ती'' में अमल जौहर था
जो भरोसा था उसे #क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर था
है तुम्हें_मौत का डर उस को ख़ुदा का डर था
बाप का इल्म न बेटे को अगर #अज़बर हो
फिर पिसर ''क़ाबिल-ए-मीरास-ए-पिदर'' क्यूँकर हो
ढूँडता ''फिरता'' हूँ मैं ‘इक़बाल’ अपने आप को
आप ही गोया "मुसाफ़िर" आप ही मंज़िल हूँ मैं
#2 - Allama Iqbal Quotes in Hindi
बड़े इसरार #पोशीदा हैं इस तन्हाई ''पसंदी'' में .
ये न समझो कि ''दीवाने'' जहनदीदा नहीं होते .
#ताजुब क्या अगर इक़बाल इस_दुनिया तुझ से नाखुश है
सारे लोग ''दुनिया'' में पसंददीदा नहीं होते .
ज़िंदगानी की #हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ
जू-ए-शीर ओ तेशा ओ ''संग-ए-गिराँ'' है ज़िंदगी
इश्क़ भी हो ''हिजाब'' में हुस्न भी हो #हिजाब में,
या तो ख़ुद ''आश्कार'' हो या मुझे आश्कार कर।
ख़ुदावंदा ये तेरे_सादा-दिल बंदे ''किधर'' जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है #सुल्तानी भी अय्यारी
जिस खेत से ''दहक़ाँ'' को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस खेत के हर ''ख़ोशा-ए-गंदुम'' को जला कर रख दो
#3 - Allama Iqbal Poetry in Hindi
मस्जिद तो ''बना'' दी शब भर में ईमाँ की #हरारत वालों ने
मन अपना_पुराना पापी है बरसों में #नमाज़ी बन न सका
दिल से जो बात-निकलती है वोअसर #रखती है
लेकिन नहीं ''ताक़त-ए-परवाज़'' मगर रखती है
खुदी को कर ''बुलंद'' इतना कि हर #तकदीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे_बता तेरी रजा क्या है
अपने मन में डूब कर पा जा ''सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी'' तू अगर मेरा नहीं बनता न ''बन'' अपना तो बन
यक़ीं मोहकम अमल ''पैहम'' मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम "जिहाद-ए-ज़िंदगानी'' में हैं ये ''मर्दों'' की शमशीरें
#4 - Allama Iqbal Shayari in Hindi Pdf Download
कितनी अजीब है #गुनाहों की जुस्तजू_इकबाल
नमाज भी ''जल्दी'' में पड़ता है फिर से #गुनाह करने के लिए
-
रहमत है ''दिल'' के साथ रहे #पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी #कभी तो इसे ''तन्हा'' भी छोड़ दे
कभी ऐ #हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ #लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे_तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
ताही #ज़िंदगी से नहीं हैं ये फिज़ाएँ
यहाँ सैंकड़ों ''कारवाँ'' अभी और भी हैं
साकी की #मुहब्बत में दिल साफ_हुआ इतना
जब सर को झुकाता हूं #शीशा नजर आता है
#5 - Allama Iqbal Shayari in Urdu
दुश्मन के #इरादों को है ज़ाहिर अगर_करना
तुम खेल वही खेलो #अंदाज़ बदल डालो..!
-
हरम-ए-पाक भी #अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो "मुसलमान" भी एक
#जानते हो तुम भी फिर भी #अजनान बनते हो
इस तरह हमें ''परेशान'' करते हो
पूछते हो 'तुम्हे' किया पसंद है
जवाब खुद हो फिर भी #सवाल करते हो
मिटा दे अपनी #हस्ती को गर कुछ #मर्तबा* चाहिए
कि दाना खाक में मिलकर, "गुले-गुलजार" होता है
-
अपने 'मन' में डूब कर पा जा #सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं ''बनता'' न बन अपना तो बन
#6 - मोहम्मद शायरी हिंदी
बात #सझ्दों कि नहीं खुलूस दिल कि होती है #इकबाल
हर 'मयखाने' में सराबी और हर #मस्जिद में कोई ''नमाजी'' नहीं होता
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ज़मीर 'जाग' ही जाता है अगर ज़िन्दा हो #इक़बाल,
कभी गुनाह से #पहले तो कभी गुनाह के बाद।
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ढूंढता रहता हूं ऐ ''इकबाल'' अपने आप को.
आप ही गोया 'मुसाफिर' आप ही #मंजिल हूं मैं
अमल से #ज़िन्दगी बनती है, ''जन्नत'' भी, जहन्नम भी,
ये खाकी अपनी #फितरत में, न नूरी है न नारी है.
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दुआ तो ''दिल'' से मांगी जाती है, जुबां से नहीं ऐ #इक़्बाल,
क़ुबूल #तोह उसकी भी होती है जिसकी_जुबां नहीं होती.
#7 - अल्लामा इकबाल की गजल
''मुमकिन'' है कि तू जिसको_समझता है बहारां
औरों की निगाहों में वो "मौसम" हो खिजां का
-
खुदा के 'बन्दे' तो हैं हजारों बनो में फिरते हैं #मारे-मारे
मैं उसका ''बन्दा'' बनूंगा जिसको खुदा के #बन्दों से प्यार होगा
-
नहीं इस खुली_फ़ज़ा में कोई #गोशा-ए-फ़राग़त
ये जहाँ अजब जहाँ है न ''क़फ़स'' न आशियाना
सारे जहाँ से अच्छा,# हिन्दोस्ताँ हमारा
हम "बुलबुलें" हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा
-
तू शाहीं है #परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने ''आसमाँ'' और भी हैं
#8 - अल्लामा इक़बाल रेख़्ता
तू क़ादिर ओ #आदिल है मगर तेरे जहाँ में
हैं तल्ख़ बहुत "बंदा-ए-मज़दूर" के औक़ात
-
नहीं तेरा ''नशेमन'' क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर_पहाड़ों की चटानों में
-
तेरी ''बन्दा'' परवारी से मेरे दिन गुज़र रहे हैं
न गिला है #दोस्तों का ,
न #शिकायत-ऐ-ज़माना…!
#रुलाया ना कर हर बात पर ए
जिंदगी ज़रुरी नहीं सब की "किस्मत" में
चुप #करवाने वाले हो
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जमीर_जाग ही जाता है
अगर दिल #जिंदा हो तो..
कभी ''गुनाह'' से पहले
कभी गुनाह के बाद..
#9 - इकबाल के तराने
महीने-वस्ल के घड़ियों की 'सूरत' उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ #जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
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हम जब_निभाते है तो इस तरह ''निभाते'' है
सांस लेना तो #छोड़ सकते है पर दमन_यार नहीं
-
अल्लामा "इक़बाल" रह० ने 'फरमाया' था:-
की मोहम्मद से #वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ है क्या "लौह-ओ-क़लम" तेरे हैं
ख़ुदी वो ''बहर'' है जिस का कोई किनारा नहीं
तू आबजू इसे समझा_अगर तो चारा नहीं
-
अपने मन में #डूबकर पा जा सुराग_जिंदगी
तू अगर मेरा नहीं #बनता ना बन अपना तो बन
#10 - अल्लामा इक़बाल पुस्तकें
अगर #हंगामा-हा-ए-शौक़ से है "ला-मकाँ" ख़ाली ख़ता किस की है या रब #ला-मकाँ तेरा है या मेरा
-
#वक़्त-ए-फ़ुर्सत है कहाँ काम अभी_बाक़ी है
नूर-ए-तौहीद का ''इत्माम'' अभी बाक़ी है
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नशा ''पिला'' के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि "गिरतों" को थाम ले साक़ी
#फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में "पनपने" की यही बातें हैं
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मिटा दे अपनी_हस्ती को गर कुछ मर्तबा* चाहिए
कि दाना खाक में मिलकर, #गुले-गुलजार होता है
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