बहादुर शाह ज़फ़र की शायरी | 50 Best Bahadur Shah Zafar Shayari Poetry in Hindi And Punjabi

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#1 - Top 10 Bahadur Shah Zafar Shayari in Hindi


पसे-मर्ग मेरी मजार पर जो दिया किसी ने जला दिया ।

उसे आह! दामन-ए-बाद ने सरेशाम ही से बुझा दिया ।।



मुझे दफ़्न करना तू जिस घड़ी, तो ये उससे कहना कि ऐ परी,

वो जो तेरा आशिक़-ए-जार था, तह-ए-ख़ाक उसको दबा दिया ।


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दम-ए-ग़ुस्ल से मेरे पेशतर उसे हमदमों ने ये सोचकर,

कहीं जावे उसका दिल दहल, मेरी लाश पर से हटा दिया ।



मेरी आँख झपकी थी एक पल, मेरे दिल ने चाहा कि उसके चल,

दिल-ए-बेक़रार ने ओ मियाँ! वहीं चुटकी लेके जगा दिया ।


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मैंने दिल दिया, मैंने जान दी, मगर आह तूने न क़द्र की,

किसी बात को जो कभी कहा, उसे चुटकियों से उड़ा दिया ।


#2 - Bahadur Shah Zafar Poetry in Hindi


हम तो चलते हैं लो ख़ुदा हाफ़िज़

बुतकदे के बुतों ख़ुदा हाफ़िज़



कर चुके तुम नसीहतें हम को

जाओ बस नासेहो ख़ुदा हाफ़िज़


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आज कुछ और तरह पर उन की

सुनते हैं गुफ़्तगू ख़ुदा हाफ़िज़



बर यही है हमेशा ज़ख़्म पे ज़ख़्म

दिल का चाराग़रों ख़ुदा हाफ़िज़


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आज है कुछ ज़ियादा बेताबी

दिल-ए-बेताब को ख़ुदा हाफ़िज़


#3 - Bahadur Shah Zafar Quotes in Hindi


क्यों हिफ़ाज़त हम और की ढूँढें

हर नफ़स जब कि है ख़ुदा हाफ़िज़



चाहे रुख़्सत हो राह-ए-इश्क़ में अक़्ल

ऐ "ज़फ़र" जाने दो ख़ुदा हाफ़िज़


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कीजे न दस में बैठ कर आपस की बातचीत

पहुँचेगी दस हज़ार जगह दस की बातचीत



कब तक रहें ख़मोश के ज़ाहिर से आप की

हम ने बहुत सुनी कस-ओ-नाकस की बातचीत


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मुद्दत के बाद हज़रत-ए-नासेह करम किया

फ़र्माइये मिज़ाज-ए-मुक़द्दस की बातचीत


#4 - बहादुर शाह जफर की आखिरी गजल


पर तर्क-ए-इश्क़ के लिये इज़हार कुछ न हो

मैं क्या करूँ नहीं ये मेरे बस की बातचीत


-


क्या याद आ गया है "ज़फ़र" पंजा-ए-निगार

कुछ हो रही है बन्द-ओ-मुख़म्मस की बातचीत


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लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में

किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में



कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें

इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में


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उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन

दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में


#5 - बहादुर शाह जफर की गजल


कितना है बदनसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये

दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में


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सुबह रो-रो के शाम होती है

शब तड़प कर तमाम होती है


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सामने चश्म-ए-मस्त साक़ी के

किस को परवाह-ए-जाम होती है



कोई ग़ुंचा खिला के बुल-बुल को

बेकली ज़र-ए-दाम होती है


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हम जो कहते हैं कुछ इशारों से

ये ख़ता ला-कलाम होती है


#6 - बहादुर शाह जफर की मसूर शायरी


थे कल जो अपने घर में वो महमाँ कहाँ हैं

जो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैं


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आँखों में रोते-रोते नम भी नहीं अब तो

थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं


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कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं

पहले जो ऐ "ज़फ़र" थे वो इन्साँ कहाँ हैं



वो बेहिसाब जो पी के कल शराब आया

अगर्चे मस्त था मैं पर मुझे हिजाब आया


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इधर ख़्याल मेरे दिल में ज़ुल्फ़ का गुज़रा

उधर वो खाता हुआ दिल में पेच-ओ-ताब आया


#7 - बहादुर शाह जफर कविता कोश


ख़्याल किस का समाया है दीदा-ओ-दिल में

न दिल को चैन मुझे और न शब को ख़्वाब आया


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या मुझे अफ़सर-ए-शाहा न बनाया होता

या मेरा ताज गदाया न बनाया होता


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ख़ाकसारी के लिये गरचे बनाया था मुझे

काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होता



नशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझ को

उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता


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अपना दीवाना बनाया मुझे होता तूने

क्यों ख़िरद्मन्द बनाया न बनाया होता


#8 - बहादुर शाह जफर की शायरी हिंदी में


शोला-ए-हुस्न चमन् में न दिखाया उस ने

वरना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता


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रोज़-ए-ममूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र'

ऐसी बस्ती से तो वीराना बनाया होता


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जा कहियो उन से नसीम-ए-सहर मेरा चैन गया मेरी नींद गई

तुम्हें मेरी न मुझ को तुम्हारी ख़बर मेरा चैन गया मेरी नींद गई



न हरम में तुम्हारे यार पता न सुराग़ देर में है मिलता

कहाँ जा के देखूँ मैं जाऊँ किधर मेरा चैन गया मेरी नींद गई


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ऐ बादशाह्-ए-ख़बाँ-ए-जहाँ तेरी मोहिनी सुरत पे क़ुर्बाँ

की मैं ने जो तेरी जबीं पे नज़र मेरा चैन गया मेरी नींद गई


#9 - Bahadur Shah Zafar Ghazal in Hindi


हुई बद-ए-बहारी चमन में अयाँ गुल बुटी में बाक़ी रही न फ़िज़ा

मेरी शाख़-ए-उम्मीद न लाई सँवर मेरा चैन गया मेरी नींद गई


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ऐ बर्क़-ए-तजल्लि बहर-ए-ख़ुदा न जला मुझे हिज्र में शम्मा सा

मेरी ज़ीस्त है मिस्ल-ए-चिराग़-ए-सहर मेरा चैन गया मेरी नींद गई


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कहता है यही रो-रो के "ज़फ़र" मेरी आह-ए-रसा का हुआ न असर

तेरे हिज्र में मौत न आई अभी मेरा चैन गया मेरी नींद गई



यही कहना था शेरों के आज "ज़फ़र" मेरी आह-ए-रसा में हुआ न असर

तेरे हिज्र में मौत न आई मगर मेरा चैन गया मेरी नींद गई


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शमशीर बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी है

जूड़े की गुंधावत बहर-ए-ख़ुदा ज़ुल्फ़ों की लटक फिर वैसी है


#10 - बहादुर शाह जफर के मसूर शेर


हर बात में उस के गर्मी है हर नाज़ में उस के शोख़ी है

आमद है क़यामत् चाल भरी चलने की फड़क फिर वैसी है


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महरम है हबाब-ए-आब-ए-रवा सूरज की किरन है उस पे लिपट

जाली की ये कुरती है वो बला गोटे की धनक फिर वैसी है


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वो गाये तो आफ़त लाये है सुर ताल में लेवे जान निकाल

नाच उस का उठाये सौ फ़ितने घुन्घरू की छनक फिर वैसी है



खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर

पर दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर


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मैं क्यूँकर कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से वो

आयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर


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