गुरु नानक के सर्वश्रेष्ठ दोहे | 33 Best Guru Nanak Ke Dohe With Meaning in Hindi With HD Images
Top Guru Nanak Ke Dohe, Pad And Poems in Hindi With Meaning : नानक सिखों के प्रथम (आदि )गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे।
गुरु नानक के सर्वश्रेष्ठ दोहे अर्थ सहित हिन्दी मे ( फोटोस के साथ )
- 1 -
जेती सिरठि उपाई वेखा
विणु करमा कि मिलै लई।
अर्थ : संसार में हमारे कर्मों के अनुसार हीं हमें मिलता है। कुछ भी हासिल करने के लिये हमें कर्म करना पड़ता है। तब प्रभु की प्राप्ति बिना कर्म के कैसे संभव है। किन्तु किसी भौतिक वस्तु को प्राप्त करने की मनोकामना से किये गये कर्म ब्यर्थ हैं।
- 2 -
तीरथि नावा जे तिसु भावा
विणु भाणे कि नाइ करी।
अर्थ : तीर्थों में स्नान से प्रभु तब खुश होंगें जब वह उन्हें मंजूर हो। बिना ईश्वर के मान्यता के तीर्थों का स्नान कोई अर्थ नहीं रखता। उससे किसी तरह के फायदा होने का कोई कारण नहीं है।
- 3 -
गुरा इक देहि बुझाई।
सभना जीआ का इकु दाता
सो मैं विसरि न जाई।
अर्थ : गुरू की शिक्षा है कि सभी जीवों का सृश्टिकत्र्ता एक परमात्मा है। उस परम पिता को हमें सर्वदा याद रखनी चाहिये।
- 4 -
जे हउ जाणा आखा नाही
कहणा कथनु न जाई।
अर्थ : ईश्वर की ज्योति को जान लेने पर भी उसे शब्दों में ब्यक्त नही किया जा सकता है। वह कथन से परे मात्र हृदय में अनुभव जन्य है।
- 5 -
गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं
गुरमुखि रहिआ समाई।
गुरू ईसरू गुरू गोरखु बरमा
गुरू पारबती माई।
अर्थ : गुरू वाणी हीं शब्द एवं बेद है। प्रभु उन्हीं शब्दों एवं विचारों में निवास करते हैं। गुरू हीं शिव बिश्नु ब्रम्हा एवं पार्वती माता हैं। सभी देवताओं का मिलन गुरू के वचनों में हीं प्राप्त है।
- 6 -
गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ
दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ।
अर्थ : उसके गुणों का गीत गाने सुनने एवं मन में भाव रखने से समस्त दुखों का नाश एवं अनन्य सुखों का भण्डार प्राप्त होता है।
- 7 -
जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु।
नानक गावीऐ गुणी निधानु।
अर्थ : जिसने प्रभु की सेवा की उसे सर्वोत्तम प्रतिश्ठा मिली। इसीलिये उसके गुणों का गायन करना चाहिये-ऐसा गुरू नानक का मत है।
- 8 -
थापिआ न जाइ कीता न होइ।
आपे आपि निरंजनु सोइ।
अर्थ : भगवान अजन्मा निराकार मायातीत अटल सिद्धस्वरूप अनादि एवं अनन्त हैं।
- 9 -
धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
- 10 -
पवणु गुरु पानी पिता माता धरति महतु।
दिवस रात दुई दाई दाइआ खेले सगलु जगतु ॥
- 11 -
सालाही सालाही एती सुरति न पाइया।
नदिआ अते वाह पवहि समुंदि न जाणी अहि ॥
- 12 -
एक ओंकार सतनाम, करता पुरखु निरभऊ।
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।।
हुकमी उत्तम नीचु हुकमि लिखित दुखसुख पाई अहि।
इकना हुकमी बक्शीस इकि हुकमी सदा भवाई अहि ॥
- 13 -
मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
- 14 -
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
- 15 -
करमी आवै कपड़ा। नदरी मोखु दुआरू।
नानक एवै जाणीऐ। सभु आपे सचिआरू।
अर्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि हमारे अच्छे और बुरे कर्मो से यह शरीर बदल जाता है। मुक्ति-मोक्ष की प्राप्ति तो केवल प्रभु कृपा से ही संभव है। हमें अपने समस्त भ्रमों का नाश करके ईश्वर तत्व का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। हमें प्रभु के सर्वकत्र्ता एवं सर्वब्यापी सत्ता में विश्वास करना चाहिये।
- 16 -
अंम्रित वेला सचु नाउ वडिआई वीचारू।
अर्थ : गुरु नानक देव जी समझाते हुए प्रातःकाल को अमृत बेला के नाम से सुशोभित करते है। गुरु नानक देव जी कहते है, कि इस समय हृदय से प्रभु का जप स्मरण करने से वह अपनी कृपा प्रदान करता है। इस समय ईश्वर में एकाग्रता सहज होता है। अतः प्रातःकाल में हमें प्रभु का ध्यान अवश्य करना चाहिये।
- 17 -
फेरि कि अगै रखीऐ। जितु दिसै दरबारू।
मुहौ कि बोलणु बोलीएै। जितु सुणि धरे पिआरू।
अर्थ : गुरु नानक देव जी हमें मार्गदर्शित करते है कि हमें यह ज्ञात नही है कि उसे क्या अर्पण किया जाये जिससे वह हमें दर्शन दे। हम कैसे उसे गायें-याद करें-गाुणगान करें कि वह प्रसन्न होकर हमें अपनी कृपा से सराबोर करे और अपना प्रेम हमें सुलभ कर दे।
- 18 -
साचा साहिबु साचु नाइ। भाखिआ भाउ अपारू।
आखहि मंगहि देहि देहि। दाति करे दातारू।
अर्थ : गुरु नानक देव जी उपदेश देते हुए कहते है, कि प्रभु सत्य एवं उसका नाम सत्य है। अलग अलग विचारों एवं भावों तथा बोलियों में उसे भिन्न भिन्न नाम दिये गये हैं। प्रत्येक जीव उसके दया की भीख माॅगता है तथा सब जीव उसके कृपा का अधिकारी है। और वह भी हमें अपने कर्मों के मुताबिक अपनी दया प्रदान करता है।
- 19 -
मंनै तरै तारे गुरू सिख। मंनै नानक भवहि न भिख।
अर्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि प्रभु के नाम का निरंतर मनन करने बाला स्वयं तो संसार रूपी सागर को पार कर हीं जाता है-वह अपने साथ सभी गुरू भाइयों को भी तार देता है। नानक देव जी का विश्वास है कि वह 84 लाख योनियों में नही भटकता है। उसमें तब किसी तरह की इच्छा भी नही रह जाती है।
- 20 -
ऐसा नाम निरंजनु होइ। जे को मंनि जाणै मनि कोइ।
अर्थ : गुरु नानक देव जी भक्त के बारे बताते है, कि नाम का मनन करने बाला हीं उसका महत्व जानता है-दूसरा कोई नहीं।
- 21 -
मंनै पावहि मोखु दुआरू। मंनै परवारै साधारू।
अर्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि प्रभु नाम का नित्य स्मरण करने बाला हीं मुक्ति मोक्ष का अधिकारी है। वह अपने सम्पूर्ण परिवार को भी ईश्वर की शरण में लाकर ताड़ देता है।
- 22 -
ऐसा नामु निरंजनु होइ। जे को मंनि जाणै मनि कोइ।
अर्थ : गुरू नानक देव जी का प्रभु पर दृढ़ विश्वास है, कि नाम की महिमा केवल उसे मनन सुमिरण करने बाला हीं जानता है अन्य कोई नहीं जान सकता
- 23 -
मंनै मगु न चलै पंथु। मंनै धरम सेती सनबंधु।
अर्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि जो ब्यक्ति प्रभु नाम की दीक्षा लेता है, वह दूसरे लोगों के द्वारा चलाये गये पंथों में भ्रमित नही होता। वे कोई अन्य रास्ता नही अपनाते और सर्वदा सच्चे धर्म पर अडिग रहते हैं।
- 24 -
मंनै मारगि ठाक न पाइ। मंनै पति सिउ परगटु जाइ।
अर्थ : प्रभु नाम के मनन चिंतन करने बाले के सामने किसी तरह की विघ्न बाधा नहीं आती है। वह ब्यक्ति सभी जगह मान इज्जत पाता है।
- 25 -
मंनै मुहि चोटा ना खाइ। मंनै जम कै साथि न जाइ।
अर्थ : प्रभु का चिंतन करने बाला काल मृत्यु के घात से भी सुरक्षित रहता है। वह मौत के मुॅह में नही जाता है।वह मनस्वी अमरता प्राप्त करता है। उसे मृत्यु दूत नही ले जा पाते हैं।
- 26 -
मंनै सुरति होवै मनि बुधि। मंनै सगल भवण की सुधि।
अर्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि नाम सुमिरण करने से हीं ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है, तथा उसकी बुद्धि भी पवित्र हो जाती है। तब उस ब्यक्ति को संसार के समस्त लोकों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
- 27 -
ऐसा नामु निरंजनु होइ। जे को मंनि जाणै मनि कोइ।
अर्थ : प्रभु नाम के सुमिरण मनन करने का महत्व तो केवल वही आदमी जान समझ सकता है। दूसरा कोई मनुश्य उसका वर्णन नही कर सकता है।
- 28 -
कागदि कलम न लिखणहारू। मंने काबहि करनि वीचारू।
अर्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि ऐसी कोई कागज और कलम नही बनी है अैार कोई ऐसा लिखने बाला भी नहीं है जो प्रभु के नाम की महत्ता का वर्णन कर सके।
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जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई।
अर्थ : संसार में हमारे कर्मों के अनुसार हीं हमें मिलता है। कुछ भी हासिल करने के लिये हमें कर्म करना पड़ता है। तब प्रभु की प्राप्ति बिना कर्म के कैसे संभव है। किन्तु किसी भौतिक वस्तु को प्राप्त करने की मनोकामना से किये गये कर्म ब्यर्थ हैं।
- 30 -
जे हउ जाणा आखा नाही। कहणा कथनु न जाई।
अर्थ : ईश्वर की ज्योति को जान लेने पर भी उसे शब्दों में ब्यक्त नही किया जा सकता है। वह कथन से परे मात्र हृदय में अनुभव जन्य है।
- 31 -
तीरथि नावा जे तिसु भावा। विणु भाणे कि नाइ करी।
अर्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि तीर्थों में स्नान से प्रभु तब खुश होंगें जब वह उन्हें मंजूर हो। बिना ईश्वर के मान्यता के तीर्थों का स्नान कोई अर्थ नहीं रखता। उससे किसी तरह के फायदा होने का कोई कारण नहीं है।
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गुरा इक देहि बुझाई। सभना जीआ का इकु दाता सो मैं विसरि न जाई।
अर्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि उसके गुणों का गीत गाने सुनने एवं मन में भाव रखने से समस्त दुखों का नाश एवं अनन्य सुखों का भण्डार प्राप्त होता है।
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गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ। दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ।
अर्थ : जिसने प्रभु की सेवा की उसे सर्वोत्तम प्रतिश्ठा मिली। इसीलिये उसके गुणों का गायन करना चाहिये-ऐसा गुरू नानक का मत है।
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