मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन | 101+ Munshi Premchand Quotes Thoughts in Hindi
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#1 - Top 10 Munshi Premchand Quotes in Hindi
विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।
माँ की 'ममता' और पिता की 'क्षमता' का अंदाज़ा लगा पाना असंभव है।
दूसरे के लिए कितना ही मरो, तो भी अपने नहीं होते। पानी तेल में कितना ही मिले, फिर भी अलग ही रहेगा।
सत्य की एक चिंगारी, असत्य के पहाड़ को भस्म कर सकती है।
धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है।
#2 - Premchand Quotes On Education in Hindi
कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमान वश अज्ञानी समझते हैं।
यह जमाना चाटुकारिता और सलामी का है तुम विद्या के सागर बने बैठे रहो, कोई सेत भी न पूछेगा।
खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में।
सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है।
आशा उत्साह की जननी है, आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है।
#3 - Munshi Premchand Jayanti Quotes
जिसकी आत्मा में बल नहीं,अभिमान नहीं, वह और चाहे कुछ हो, आदमी नहीं है।
आदमी का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है।
निर्धनता प्रकट करना निर्धन होने से अधिक दुखदायी होता है।
कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है।
डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है।
#4 - प्रेमचंद की अनमोल बातें
जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है। उनका सुख छीनने में नहीं।
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किसी को भी दूसरों के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं हैं। उपजीवी होना, घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणिमात्र का धर्म है।
प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है।
युवावस्था आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी।
कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता, कर्तव्य पालन में ही चित्त की शांति है।
#5 - साहित्यिक अनमोल विचार
साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है।
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अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए, तो यह उससे कहीं ज्यादा अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे।
जो शिक्षा प्रणाली लड़के लड़कियों को सामाजिक बुराई या अन्याय के खिलाफ लड़ना नहीं सिखाती उस शिक्षा प्रणाली में ज़रूर कोई न कोई बुनियादी खराबी है।
संतोष-सेतु जब टूट जाता है तब इच्छा का बहाव अपरिमित हो जाता है।
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दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं उसकी दौलत का सम्मान है।
#6 - मुंशी प्रेमचंद कोट्स इन हिंदी
दु:खी हृदय दुखती हुई आँख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।
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बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता।
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निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है।
बड़े-बड़े महान संकल्प आवेश में ही जन्म लेते हैं।
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देह के भीतर इसीलिए आत्मा रखी गई है कि देह उसकी रक्षा करे। इसलिए नहीं कि उसका सर्वनाश कर दे।
#7 - प्रेमचंद की सुंदर कविता
लोग कहते हैं आंदोलन, प्रदर्शन और जुलूस निकालने से क्या होता है ? इससे यह सिद्ध होता है कि हम जीवित है।
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मासिक वेतन पूर्णमासी का चाँद है। जो एक दिन दिखाई देता है और घटते ख़त्म हो जाता है।
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हमारे यहाँ विवाह का आधार प्रेम और इच्छा पर नहीं, धर्म और कर्तव्य पर रखा गया है। इच्छा चंचल है, क्षण-क्षण में बदलती रहती है। कर्तव्य स्थायी है, उसमें कभी परिवर्तन नहीं होता।
अब सब जने खड़े क्या पछता रहे हो। देख ली अपनी दुर्दशा, या अभी कुछ बाकी है। आज तुमने देख लिया न कि हमारे ऊपर कानून से नहीं, लाठी से राज हो रहा है। आज हम इतने बेशरम हैं कि इतनी दुर्दशा होने पर भी कुछ नहीं बोलते।
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विजयी व्यक्ति स्वभाव से बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।
#8 - मुंशी प्रेमचंद शायरी
मोहब्बत रूह की ख़ुराक है, यह वह अमृत है जो मरे हुए भावों को ज़िंदा कर देती है।
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मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।
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आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है।
सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है।
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इंसान सब हैं पर, इंसानियत विरलों में मिलती है।
#9 - मुंशी प्रेमचंद के दोहे
प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, चाहे वह गेहूं की हों या बाजरे की।
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देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा।
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राष्ट्र के सामने जो समस्याएँ हैं, उनका सम्बन्ध हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई सभी से है। बेकारी से सभी दुखी हैं। दरिद्रता सभी का गला दबाये हुए है। नित नयी-नयी बीमारियाँ पैदा होती जा रही हैं। उसका वार सभी सम्प्रदायों पर समान रूप से होता है।
कोई अन्याय केवल इसलिए मान्य नहीं हो सकता कि लोग उसे परम्परा से सहते आये हैं।
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चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएं।
#10 - मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन
जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्जत और मर्यादा सब ढोंग है।
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धर्म की कसौटी मानवता है। जिस धर्म में मानवता को प्रधानता दी गयी है, बस उसी धर्म का मैं दास हूँ। कोई देवता हो, नबी या पैगंबर, अगर वह मानवता के विरुद्ध है तो उसे मेरा दूर से ही सलाम है।
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अन्याय होने पर चुप रहना, अन्याय करने के ही समान है।
लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है! जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे?
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मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है।
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